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रविवार, 18 सितंबर 2016

घरवाली (Gharwali in Sanskrit)

पोतानेतानपि गृहवति ग्रीष्ममासावसानं
यावन्निर्वाहयतु भवती येन वा केनचिद् वा l 
पश्चादम्भोधरजलपरीपातमासाद्य तुम्बी 
कूष्माण्डी छ प्रभवति तदा भूभुजः के वयं के ? ll


गर्मी के ये दिन बीत जायें बस
बच्चों को सँभाले रहो
ओ घरवाली,
जैसे भी बन पाये, वैसे
फिर आयेगी बरसात गिरेगा पानी
जिसको पाकर फल जायेगी कुम्हड़े और लौकी की बेलें
तब हम क्या
और राजा महाराजा क्या ?


क्षुत्क्षामाः शिशवः शवा इव तनुर्मन्दादरो बान्धवो 
लिप्ता जर्जरकर्करी जतुलवैर्नो मां तथा बाधते l 
गेहिन्या स्फुटितांशुकं घटयितुं कृत्वा सकाकुस्मितं 
कुप्यन्ती प्रतिवेशिनी प्रतिदिनं सूची यथा याचिता ll  


भूख से दुबलाये बच्चे मुर्दों की तरह हो गये हैं
कुछ ही बचे हैं रिश्तेदार
वे भी करते हैं तिरस्कार
जर्जर गगरी लाख से जिसे साधा गया है कितनी ही बार
ये सब नहीं सालते मन को उतना, जितना
घरवाली का फटा वस्त्र सीने को
सूई-धागा लेने पड़ोस में जाना
पड़ोसिन का मुँह बिचकाना, कुढ़ना, मुस्काना


कवि - अज्ञात 
मूलतः विद्याकर के सुभाषितरत्नकोश से संकलित (संपादन दामोदर धर्मानंद कौसांबी) 
पुस्तक - संस्कृत कविता में लोकजीवन 
चयन और अनुवाद - डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी 
प्रकाशन - यश पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 2010

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