https://www.youtube.com/watch?v=DG8F-csoRAQ
'पहिले पहिल छठी मैया' यह पिछले साल का वीडियो है, मगर मैंने अभी पिछले महीने देखा था. उसके बाद कई बार नज़र
से गुज़रा. इधर तो सोशल मीडिया में यह तेज़ी
से घूमने लगा है. छठ जो नज़दीक है !
बिहार के महत्त्वपूर्ण त्योहार छठ पर केन्द्रित
इस वीडियो से गैर-बिहारी भी अपने को जोड़ सकते हैं. अपने अपने प्रदेश की संस्कृति से
दूर जाने की कसक सबको है. इसमें अतीत की खूबसूरत चीज़ों के छूट जाने का दर्द ऐसे पिरोया
हुआ है कि उसका साधारणीकरण होने में देर नहीं लगती है.
यह कहना झूठ होगा कि इसे देखकर मैं भावुक नहीं हुई. माँ
के छठ करने की पावन याद जग गई और तकलीफ हुई इसके छूट जाने पर. लेकिन जेंडर आधारित भूमिका, पितृसत्ता का जाल, पितृत्ववाद (Paternalism)की चिकनी-चुपड़ी गलियाँ अब एकदम अनजानी नहीं हैं. थोड़ी थोड़ी पहचान
होने लगी है इनसे. इसलिए वीडियो का एक एक शॉट समझ में आने लगा. कितनी बारीकी से सारा
सरो सामान जुटाया गया है.