हस्तप्राप्यतृणोज्झिता: प्रतिपयोवृत्तिस्खलद्भित्तयो
दूरालम्बितदारुदन्तुरमुखाः पर्यन्तवल्लीवृता: l
वस्त्राभावविलीनसत्रपवधूदत्तार् गला निर्गिर-
स्त्यज्यन्ते चिर्शून्यविभ्रमभृतो भिक्षाचरैर्मद्गृहा: ll
यह मेरा घर है
हाथ में आया तिनका भी
टिक नहीं पाता इसमें रहकर
हर बरसात में इसमें दीवारें ढहती जाती हैं
बहुत नीचे तक झुक आई बल्लियों से
दाँत निपोरता है मेरा घर l
चारों ओर से इसे जकड़ रखा है बेलों ने l
भीतर ही भीतर डोलती है, दुबकी सी रहती है -
इस घर की बहू
तन पर कपड़ों की कमी के कारण
वह झट से चढ़ा देती है साँकल
जब भी मैं जाता हूँ इस घर से बाहर,
या आता हूँ बाहर से घर में l
बोलता नहीं है यह घर
गूँगा सा घर है मेरा l
बहुत समय से बंद हैं इसकी किलकारियाँ
बहुत समय से पसरा है इसमें सूनापन
बहुत दूर से इसे देख कर
आगे बढ़ जाते हैं भिखमंगे l
कवि - अज्ञात
संग्रह - संस्कृत कविता की लोकधर्मी परम्परा
चयन और संस्कृत से हिन्दी अनुवाद - डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी
प्रकाशक - रामकृष्ण प्रकाशन, विदिशा, मध्य प्रदेश, 2000
डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी के शब्दों में संस्कृत की लोकधर्मी काव्य परम्परा "राजसभा की सँकरी दुनिया के बाहर भारतीय जनता के विराट् संसार से उपजी थी. इसे वे अनाम और अनजाने कवि विकसित करते रहे, जिन्हें दरबारों में आश्रय नहीं मिला, प्रसिद्धि और सुरक्षा नहीं मिली. राजकीय लेखकों (लिपिकारों) द्वारा उनकी रचनाओं की पाण्डुलिपियाँ तैयार करवा कर ग्रन्थभण्डारों में नहीं रखी गयी. भौतिक सुरक्षा के अभाव में उनकी रचनाओं का बड़ा हिस्सा निश्चय ही कालकवलित हो गया, पर यह पूरी परम्परा अत्यंत प्राणवान और कालजयी थी, अपने सामर्थ्य से वह जीती रही. कालिदास, भारवि, माघ, श्रीहर्ष आदि के समानान्तर रची जाती रही भारतीय जनसामान्य की कविता का कुछ थोड़ा सा अंश सुभाषित संग्रहों में संकलित मुक्तकों के माध्यम से बच पाया है. पर जितना बचा है, वह अभिजात-कविता से अलग अपनी प्रखरता और पहचान स्थापित करता है." प्रस्तुत पद्य लोकधर्मी परम्परा के प्रतिनिधि ग्रन्थ माने जानेवाले श्रीधर के 'सदुक्तिकर्णामृत' (1205 ई.) नामक सुभाषित संग्रह में संकलित है जिसके रचयिता के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है.
उग रहा है दर ओ दीवार से सब्ज़ा ग़ालिब
जवाब देंहटाएंहम बयाबान में हैं और घर में बाहार आयी है।
हिदी अनुवाद बेजोड़ है,फिर भी लगता है कि काश संस्कृत के संश्लिष्ट पदबंधों को भेदकर मूल कविता के शब्दों की टोह ले पाते।
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