फिर से शीतऋतु, फिर
ठण्ड
क्या फ्रैंक फिसला नहीं था बर्फ पर
क्या उसका ज़ख्म भर नहीं गया था? क्या वसंत के बीज रोपे नहीं
गए थे
क्या रात खत्म नहीं हुई थी
क्या पिघलती बर्फ ने
भर नहीं दिया था तंग गटर को
क्या मेरी देह
बचा नहीं ली गई थी, क्या वह सुरक्षित नहीं थी
क्या ज़ख्म का निशान अदृश्य बन नहीं गया था
चोट के ऊपर
दहशत और ठण्ड
क्या वे बस खत्म नहीं हुईं, क्या आँगन के बगीचे की
कोड़ाई और रोपाई नहीं हुई
मुझे याद है धरती कैसी महसूस होती थी, लाल और ठोस
तनी कतारें, क्या बीज रोपे नहीं गए थे
मैं तुम्हारी आवाज़ सुन नहीं पा रही हूँ,
हवाओं की चीख के चलते, नंगी ज़मीन पर सीटीयां बजाती हुई
मैं और परवाह नहीं करती
कि यह कैसी आवाज़ करती है
मैं कब खामोश कर दी गई थी, कब पहली बार लगा
बिल्कुल बेकार उस आवाज़ का ब्योरा देना
वह कैसी सुनाई पड़ती है बदल नहीं सकती जो वह है---
क्या रात ख़त्म नहीं हुई, क्या धरती महफूज़ न थी
जब उसमें रोपाई हुई
क्या हमने बीज नहीं बोए,
क्या हम धरती के लिए ज़रूरी न थे,
अंगूरबेल,क्या उनकी फसल काटी नहीं गई?
- अमेरिकी कवयित्री - लुइज़ ग्लुक, 2020 की साहित्य की नोबेल पुरस्कार विजेता
- अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद - अपूर्वानंद
स्रोत - https://poets.org/poem/october-section-i
Is it winter again, is it cold again, didn't Frank just slip on the ice, didn't he heal, weren't the spring seeds planted didn't the night end, didn't the melting ice flood the narrow gutters wasn't my body rescued, wasn't it safe didn't the scar form, invisible above the injury terror and cold, didn't they just end, wasn't the back garden harrowed and planted— I remember how the earth felt, red and dense, in stiff rows, weren't the seeds planted, didn't vines climb the south wall I can't hear your voice for the wind's cries, whistling over the bare ground I no longer care what sound it makes when was I silenced, when did it first seem pointless to describe that sound what it sounds like can't change what it is— didn't the night end, wasn't the earth safe when it was planted didn't we plant the seeds, weren't we necessary to the earth, the vines, were they harvested?
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