मुझे चन्द्रविन्दु की चिन्ता है
चन्द्रविन्दु नहीं नभ का
भाषा का
लिपि का
देवनागरी लिपि का
एक मानव-समाज की ऊर्जा का एक अर्थचित्र
नयनाभिराम
लिपि के नभ का चन्द्रविन्दु
लिपि जो एक मानव-सभ्यता का आँगन है
मुझे चन्द्रविन्दु की चिन्ता है
लिपि को सुदूर जन तक पसारने वाले ये छापाखाने
रौंद जाएँगे क्या
देवनागरी लिपि की सर्वाधिक सुन्दर सुघड़ कोमल आकृति
यन्त्र-वक्ष में
न रहेगी चन्द्रविन्दु के लिए जगह
सूरज की पीठ पर छपनेवाले अखबार
छपेंगे चन्द्रविन्दु के बगैर
बड़ी होगी जो पीढ़ी बेटे-बेटियों की
अनुस्वार के उदित गोलाकार में चन्द्रविन्दु की अस्ताभा नहीं पहचानेगी
कवि - ज्ञानेन्द्रपति
संकलन - संशयात्मा
प्रकाशन - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2004
संकलन - संशयात्मा
प्रकाशन - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2004
बहुत ही सुन्दर प्रयोग है। यहाँ भाषाई-सांस्कृतिक चिन्ता की एक सूक्ष्म और भावनात्मक अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। (पवन कुमार)
जवाब देंहटाएंबहुत ज़रूरी ध्यानाकर्षण कविता ने किया है। ऐसी ही अनेक छोटी छोटी भाषाई भटकनें आजकल बोलचाल में और अब लिखने में पैठती जा रही है जिन्हें अभी तो विकृति कहा जाएगा। इस बारे में एक विशद शोधपूर्ण अनुसंधान की ज़रूरत है।
जवाब देंहटाएंकविता बेहद ज़रूरी लगी हिंदी की अस्मिता सुरक्षित करने हेतु।