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शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

बाँसुरी की फूँक (Bansuri ki foonk by Nandkishore Nawal)


जिस छिद्र में फूँक भरने से 
मेरी बाँसुरी बजती है,
तुमने उसी में फूँक भरी है। 

उस फूँक से जो स्वर निकलेगा,
उससे सारा जंगल हिल उठेगा। 
पक्षी बोल उठेंगे,
हवा चल पड़ेगी,
फूल खिल उठेगा। 
                    - 7. 3. 1976 



कवि - नंदकिशोर नवल 
किताब - पथ यहाँ से अलग होता है 
संपादक - राकेश रंजन 
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2014 

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