जी देखा है, मर देखा है
हमने सब कुछ कर देखा है
बर्गे-आवारा की सूरत
रेंज-ख़ुश्को-तर देखा है
ठंडी आहें भरनेवालों
ठंडी आहें भर देखा है
तिरी ज़ुल्फ़ों का अफ़साना
रात के होंटों पर देखा है
अपने दीवानों का आलम
तुमने कब आकर देखा है !
अंजुम की ख़ामोश फ़िज़ा में
मैंने तुम्हें अकसर देखा है
हमने बस्ती में 'जालिब'
झूठ का ऊँचा सर देखा है।
शायर - हबीब 'जालिब'
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : हबीब 'जालिब'
संपादक - नरेश नदीम
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010
हमने सब कुछ कर देखा है
बर्गे-आवारा की सूरत
रेंज-ख़ुश्को-तर देखा है
ठंडी आहें भरनेवालों
ठंडी आहें भर देखा है
तिरी ज़ुल्फ़ों का अफ़साना
रात के होंटों पर देखा है
अपने दीवानों का आलम
तुमने कब आकर देखा है !
अंजुम की ख़ामोश फ़िज़ा में
मैंने तुम्हें अकसर देखा है
हमने बस्ती में 'जालिब'
झूठ का ऊँचा सर देखा है।
शायर - हबीब 'जालिब'
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : हबीब 'जालिब'
संपादक - नरेश नदीम
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010
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