आज कपड़ों और रंगों की बात हो रही थी कि तमिल पुनर्जागरण के अग्रदूत रामलिंग स्वामी के कथन पर नज़र पड़ गई. उन्होंने अपने एक प्रवचन में कहा है -
गेरुए वस्त्र युयुत्सा के द्योतक हैं -
युयुत्सा उस व्यक्ति की, जो लड़ता है,
अपनी ही प्रकृति से,
जिसने पराजय कर लिया है प्रकृति को,
प्राप्त किया है करुणा को,
श्वेत वस्त्र उचित हैं उसके लिए।
अपने श्वेत वस्त्रों के बारे में रामलिंग स्वामी एक पद्य में कहते हैं -
झूलते हुए हाथों से शरमाकर
मैं हाथ जोड़े चलता रहा
नग्न होने की अनिच्छा से,
ढंक लिया अपने शरीर और सिर को,
सफेद वस्त्र में,
मैंने देखा नहीं उस ओर
जहां चालाकी टहलती हो,
मैं दुखी हो जाता,
वरना।
अन्यत्र उनका कहना है -
मैं दुखी हुआ,
जब मित्रों ने सुनहले किनारे की
धोती, मुझे पहनायी,
कितना व्याकुल हो गया था मैं
हे प्रभो !
फिर वह घबराहट,
जब उन्होंने भरी धूप में,
छतरी तान दी, मेरे सिर पर,
कांप गया मैं !
मैंने हाथों का रूमाल
खोंस लिया था कमर में,
ताकि हाथ जुड़े रहे,
तेरी प्रार्थना करते रहे।
आगे वे कहते हैं -
ऊँचे आसन मुझे
अव्यवस्थित करते हैं,
पैरों के ऊपर पैर
मुझे अभिनय-सा प्रतीत होता है,
नहीं सो सकता मैं
नरम गद्दों पर,
मंच पर बैठकर मैं
नहीं लटका सकता अपने पांव ;
ऊंची आवाजें
भयभीत करती हैं मुझे,
हे मां, मुझे इन सबसे बचाओ !
कवि - रामलिंग स्वामी (1823 - 1874)
किताब - रामलिंग : कवि एवं पैगम्बर
लेखक - पुरसु बालकृष्णन
अनुवाद - सुमति अय्यर
प्रकाशक - नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली, 1991
गेरुए वस्त्र युयुत्सा के द्योतक हैं -
युयुत्सा उस व्यक्ति की, जो लड़ता है,
अपनी ही प्रकृति से,
जिसने पराजय कर लिया है प्रकृति को,
प्राप्त किया है करुणा को,
श्वेत वस्त्र उचित हैं उसके लिए।
अपने श्वेत वस्त्रों के बारे में रामलिंग स्वामी एक पद्य में कहते हैं -
झूलते हुए हाथों से शरमाकर
मैं हाथ जोड़े चलता रहा
नग्न होने की अनिच्छा से,
ढंक लिया अपने शरीर और सिर को,
सफेद वस्त्र में,
मैंने देखा नहीं उस ओर
जहां चालाकी टहलती हो,
मैं दुखी हो जाता,
वरना।
अन्यत्र उनका कहना है -
मैं दुखी हुआ,
जब मित्रों ने सुनहले किनारे की
धोती, मुझे पहनायी,
कितना व्याकुल हो गया था मैं
हे प्रभो !
फिर वह घबराहट,
जब उन्होंने भरी धूप में,
छतरी तान दी, मेरे सिर पर,
कांप गया मैं !
मैंने हाथों का रूमाल
खोंस लिया था कमर में,
ताकि हाथ जुड़े रहे,
तेरी प्रार्थना करते रहे।
आगे वे कहते हैं -
ऊँचे आसन मुझे
अव्यवस्थित करते हैं,
पैरों के ऊपर पैर
मुझे अभिनय-सा प्रतीत होता है,
नहीं सो सकता मैं
नरम गद्दों पर,
मंच पर बैठकर मैं
नहीं लटका सकता अपने पांव ;
ऊंची आवाजें
भयभीत करती हैं मुझे,
हे मां, मुझे इन सबसे बचाओ !
कवि - रामलिंग स्वामी (1823 - 1874)
किताब - रामलिंग : कवि एवं पैगम्बर
लेखक - पुरसु बालकृष्णन
अनुवाद - सुमति अय्यर
प्रकाशक - नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली, 1991
आज के समय में बहुत सारी बीमारियां फैल रही हैं। हम कितना भी साफ-सफाई क्यों न अपना लें फिर भी किसी न किसी प्रकार से बीमार हो ही जाते हैं। ऐसी बीमारियों को ठीक करने के लिए हमें उचित स्वास्थ्य ज्ञान होना जरूरी है। इसके लिए मैं आज आपको ऐसी Website के बारे में बताने जा रहा हूं जहां पर आप सभी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंRead More Click here...
Health World