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सोमवार, 17 सितंबर 2018

खेल (Khel by Maithilisharan Gupt)

ध्यान न था कि राह में क्या है,
काँटा कंकर ढोंका ढेला,
                     तू भागा मैं चला पकड़ने
                     तू मुझसे मैं तुझसे खेला I

सुरभित शीतल ब्यार बही थी,
चारु चन्द्रिका छिटक रही थी,
रजतमयी-सी मुदित मही थी,
                     रत्नाकर लेता था हेला,
                     तू मुझसे मैं तुझसे खेला I

अब पकड़ा, अब पकड़ा पल में,
मैं पीछे-पीछे दौड़ा जल-थल में,
आ आकर के भी कौशल में,
                      हाथ न आया तू अलबेला,
                      तू मुझसे मैं तुझसे खेला I

यदि तू कभी हाथ भी आया,
तो छूने पर निकली छाया,
हे भगवन् ! यह कैसी माया,
                       इतना कष्ट व्यर्थ ही झेला,
                       तू मुझसे मैं तुझसे खेला I


कवि - मैथिलीशरण गुप्त
संकलन - मैथिलीशरण गुप्त ग्रंथावली, खंड 4
संपादन - कृष्णदत्त पालीवाल
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, 2008

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