ध्यान न था कि राह में क्या है,
काँटा कंकर ढोंका ढेला,
तू भागा मैं चला पकड़ने
तू मुझसे मैं तुझसे खेला I
सुरभित शीतल ब्यार बही थी,
चारु चन्द्रिका छिटक रही थी,
रजतमयी-सी मुदित मही थी,
रत्नाकर लेता था हेला,
तू मुझसे मैं तुझसे खेला I
अब पकड़ा, अब पकड़ा पल में,
मैं पीछे-पीछे दौड़ा जल-थल में,
आ आकर के भी कौशल में,
हाथ न आया तू अलबेला,
तू मुझसे मैं तुझसे खेला I
यदि तू कभी हाथ भी आया,
तो छूने पर निकली छाया,
हे भगवन् ! यह कैसी माया,
इतना कष्ट व्यर्थ ही झेला,
तू मुझसे मैं तुझसे खेला I
कवि - मैथिलीशरण गुप्त
संकलन - मैथिलीशरण गुप्त ग्रंथावली, खंड 4
संपादन - कृष्णदत्त पालीवाल
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, 2008
काँटा कंकर ढोंका ढेला,
तू भागा मैं चला पकड़ने
तू मुझसे मैं तुझसे खेला I
सुरभित शीतल ब्यार बही थी,
चारु चन्द्रिका छिटक रही थी,
रजतमयी-सी मुदित मही थी,
रत्नाकर लेता था हेला,
तू मुझसे मैं तुझसे खेला I
अब पकड़ा, अब पकड़ा पल में,
मैं पीछे-पीछे दौड़ा जल-थल में,
आ आकर के भी कौशल में,
हाथ न आया तू अलबेला,
तू मुझसे मैं तुझसे खेला I
यदि तू कभी हाथ भी आया,
तो छूने पर निकली छाया,
हे भगवन् ! यह कैसी माया,
इतना कष्ट व्यर्थ ही झेला,
तू मुझसे मैं तुझसे खेला I
कवि - मैथिलीशरण गुप्त
संकलन - मैथिलीशरण गुप्त ग्रंथावली, खंड 4
संपादन - कृष्णदत्त पालीवाल
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, 2008
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