अँधेरे के शून्य वातावरण में गति का संयमित कंपन मौजूद
है। चिंताशील पहाड़ियों की कोमलता से मूक चेतना विस्तृत
हो जाती है। आकाश अनंत ध्वनियो की अदृश्य बाढ़ में डूब
जाता है। पानी की बेमिसाल आवाज़ का सौहार्द निर्जन घर का
संकेत देता है। अँधेरे में मैं सुनहरे-कमल को खिलते देखता हूँ;
सबसे लंबा जामदानी अलग-अलग धागों से बुना जाता है।
आंतरिक दृष्टि का परिवर्तन फिर से उथले पानी को बचाता
है। रहस्यमय भूमि पर खड़े होने पर मुझे जीवन की अविरत
उड़ान का अनुभव प्राप्त होता है और रडार के अथक घूर्णन का
अनुभव होता है।
बांग्लादेशी कवि - गौरांग मोहन्ता
अनुवाद - उषा बंदे
प्रकाशन - रुब्रिक प्रकाशन, द्वारका, दिल्ली, 2018
गौरांग मोहन्ता की किताब आज शाम ही मिली और मैं उस पतली सी किताब को पढ़ गई। उनकी गद्य कविता का स्वाद मुझे थोड़ा त्रिलोचन और शमशेर की याद दिलाता रहा। बांग्लादेश के कवि गौरांग अपनी काया के अनुरूप लिखते भी हैं - नज़ाकत से, सौम्य और संवेदनशील। यों बहुत मुखर नहीं हैं, मगर कविता उनकी भरपूर बोलती है।
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