उसे किसी चीज़ से फ़र्क़ नहीं पड़ता। अगर वे उसके घर का पानी काट दें,
वह कहेगा, “ कोई बात नहीं, जाड़ा क़रीब है।”
और अगर वे घंटे भर के लिए बिजली रोक दें वह उबासी लेगा:
“कोई बात नहीं, धूप काफ़ी है”
अगर वे उसकी तनख़्वाह में कटौती की धमकी दें, वह कहेगा,
“कोई बात नहीं! मैं महीने भर के लिए शराब और तमाखू छोड़ दूँगा।”
और अगर वे उसे जेल ले जाएँ,
वह कहेगा, “कोई बात नहीं, मैं कुछ देर अपने साथअकेले रह पाऊँगा, अपनी यादों के साथ।”
और अगर उसे वे वापस घर छोड़ दें, वह कहेगा,
“कोई बात नहीं, यही मेरा घर है।”
मैंने एक बार ग़ुस्से में कहा उससे, कल कैसे रहोगे तुम?”
उसने कहा, “कल की मुझे चिंता नहीं। यह एक ख़याल भर है
जो मुझे लुभाता नहीं। मैं हूँ जो मैं हूँ: कुछ भी बदल नहीं सकता मुझे, जैसे कि मैं कुछ नहीं बदल सकता,
इसलिए मेरी धूप न छेंको।”
मैंने उससे कहा, “न तो मैं महान सिकंदर हूँ
और न मैं (तुम?) डायोजिनिस”
और उसने कहा, “लेकिन उदासीनता एक फ़लसफ़ा है
यह उम्मीद का एक पहलू है।”
फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश
संकलन - Unfortunately, It was Paradise
प्रकाशन- यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निआ प्रेस, 2003
अनुवाद एवं संपादन - Munur Akash and Carolyn Forche
with Simon Antoon and Amira El-Zein
अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद - अपूर्वानंद
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