जब मौत आए
पतझड़ के भूखे भालू की तरह;
जब मौत आए
और अपने बटुए से
सारे चमकीले सिक्के निकाल ले
मुझे खरीदने के लिए, और चट
अपना बटुआ बंद कर दे;
जब मौत आए
चेचक की तरह
जब मौत आए
हिमखंड की तरह
कंधे की हड्डियों (पंखुड़ों) के बीच,
मैं उस दरवाज़े से गुजरना चाहती हूँ भरी हुई
कौतूहल से, सोचती हुई
आखिर कैसी होगी वह कुटिया
अँधेरे की?
और इसीलिए मैं हर चीज़ को देखती हूँ
भाईचारे और बहनापे की तरह,
और मेरे लिए वक्त
एक ख्याल से अधिक कुछ नहीं,
और मैं अनंत को
एक और संभावना मानती हूँ,
और मैं हर ज़िंदगी को
एक फूल की देखती हूँ, उतनी ही आम
जितनी मैदान की वह डेज़ी, और उतनी ही
एकल
और हर नाम
होठों पर एक आरामदेह गीत
सहलाता हुआ, जैसा हर संगीत करता है, खामोशी की तरफ,
और हर शरीर
बहादुर शेर, और
इस ज़मीन के लिए कीमती.
जब यह खत्म हो जाएगा, मैं चाहती हूँ
कहना कि तमाम ज़िंदगी
मैं दुल्हन रही अचरज की.
मैं दूल्हा थी
दुनिया को अपनी बाँहों में लेती हुई.
जब यह खत्म हो जाएगा, मैं नहीं चाहती सोचना
कि क्या मैंने अपनी ज़िंदगी को कुछ ख़ास बनाया, और हक़ीक़ी।
मैं नहीं चाहती खुद को देखना आहें भरते
और भयभीत।
मैं नहीं चाहती
खत्म होना ऐसे शख्स की तरह जो
इस दुनिया में सिर्फ आया.
निधीश त्यागी के सौजन्य से
18 जनवरी, 2019
अनुवाद - अपूर्वानंद
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