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मंगलवार, 1 नवंबर 2022

रोज शाम को (Roj shaam ko by Ramgopal Sharma 'Rudra')

रोज शाम को मन थकान से भर जाता है !!

बस मरु ही मरु, आँख जहाँ तक जाए :

कोई छाँव नहीं कि जहाँ सुस्ताए :

उड़ता ही रह जाता है जो पंछी,

क्या लेकर अपने खोंते में आए !

रोज  शाम को मन उफान से भर जाता है !!


रोज-रोज  एक ही बात होती है - 

रोज पाँख से आँख मात होती है!

लेकिन, इतनी दूर निकल जाता हूँ -

आते-आते साँझ रात होती है !

रोज शाम को मन उड़ान से भर जाता है !

                                                       - 1955 


कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र'
किताब - रुद्र समग्र
संपादक - नंदकिशोर नवल
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991

नानाजी के जन्मदिन पर उनको याद करते हुए उनकी कविताएँ पढ़ रही हूँ। लगभग 70-100 साल पुरानी रचनाओं के मूड को देखकर लग रहा है कि अभी का मूड है।  

2 टिप्‍पणियां:

  1. रामगोपाल शर्मा 'रुद्र' की कविताओं पर काम करने की जरूरत है । मैं इस दिशा में कुछ प्रयास करूंगा।

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    1. एकदम विनय जी ! यदि यह हो पाए तो बहुत अच्छा रहेगा। सहयोग के लिए प्रस्तुत हूँ।

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