काफ़ी है मेरे लिए
काफ़ी है उसकी ज़मीन पर मरना
उसमें दफ़्न होना
घुलना और ग़ायब हो जाना उसकी मिट्टी में
और फिर खिल पड़ना एक फूल की शक्ल में
जिससे एक बच्चा खेले मेरे वतन का।
काफ़ी है मेरे लिए रहना
अपने मुल्क के आग़ोश में
उसमें रहना करीब मुट्ठी भर मिट्टी की तरह
घास के एक गुच्छे की तरह
एक फूल की तरह।
फ़िलिस्तीनी कवयित्री - फ़दवा तुक़ान (Fadwa Tuqan, 1917-2003)
स्रोत - https://www.milleworld.com/palestinian-poems-resistance/
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद
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