मेरे मन इतनी सूल रही l
वे बतियाँ छतियाँ लिखी राखों जे नंदलाल कही ll
एक दिवस मेरे गृह आए मैं ही मथति दही l
देखि तिन्हें मैं मान कियो सखि सो हरि गुसा गही ll
सोचति अति पछताति राधिका मूर्छित धरनि ढही l
सूरदास प्रभु के बिछुरे तें बिथा न जाति सही ll37ll
कवि - सूरदास
संकलन - भ्रमरगीतसार
संपादक - आचार्य रामचंद्र शुक्ल
प्रकाशक - नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी, संवत्
वे बतियाँ छतियाँ लिखी राखों जे नंदलाल कही ll
एक दिवस मेरे गृह आए मैं ही मथति दही l
देखि तिन्हें मैं मान कियो सखि सो हरि गुसा गही ll
सोचति अति पछताति राधिका मूर्छित धरनि ढही l
सूरदास प्रभु के बिछुरे तें बिथा न जाति सही ll37ll
कवि - सूरदास
संकलन - भ्रमरगीतसार
संपादक - आचार्य रामचंद्र शुक्ल
प्रकाशक - नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी, संवत्
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