यहाँ अभी भी मुझे दीखती है एक जगह,
एक आज़ाद जगह,
यहाँ इस छाया तले।
यह छाया
बिकाऊ नहीं है।
समुद्र की भी
पड़ती है छाया शायद,
और इसी तरह काल की भी।
छायाओं की लड़ाइयाँ
खेल हैं :
कोई छाया
दूसरे के प्रकाश में थिर नहीं रहती।
जो इस छाया में रहते हैं
उन्हें मारना कठिन होता है।
एक क्षण को
मैं अपनी छाया से बाहर आता हूँ,
एक क्षण को।
जो प्रकाश देखना चाहते हैं
जैसा कि वह है
उन्हें चले जाना चाहिए
छाया में।
छाया
सूर्य से अधिक दीप्तमान
आज़ादी की शीतल छाया।
पूरी तरह से इस छाया में
मेरी छाया विलीन हो जाती है।
इस छाया में
अभी भी जगह है।
जर्मन कवि - हैंस मैगनस ऐंसेंसबर्गर (11.11.1929)
अनुवाद - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
संकलन - धूप की लपेट
संकलन-संपादन - वीरेंद्र जैन
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000
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