यह कच्ची
कमज़ोर सूत-सी नींद नहीं
जो अपने आप टूटती है
रोज़-रोज़ की दारुण विपत्तियाँ हैं
जो आँखें खोल देती हैं अचानक
सुनो, बहुत चुपचाप पाँवों से
चला आता है कोई दुःख
पलकें छूने के लिए
सीने के भीतर आनेवाले
कुछ अकेले दिनों तक
पैठ जाने के लिए
मैं एक अकेला
थका-हारा कवि
कुछ भी नहीं हूँ अकेला
मेरी छोड़ी गयीं अधूरी लड़ाइयाँ
मुझे और थका देंगी
सुनो, वहीं था मैं
अपनी थकान, निराशा, क्रोध
आँसुओं, अकेलेपन और
एकाध छोटी-मोटी
खुशियों के साथ
यहीं नींद मेरी टूटी थी
कोई दुःख था शायद
जो अब सिर्फ़ मेरा नहीं था
अब सिर्फ़ मैं नहीं था अकेला
अपने जागने में
चलने के पहले
एक बार और पुकारो मुझे
मैं तुम्हारे साथ हूँ
तुम्हारी पुकार की उँगलियाँ थाम कर
चलता चला आऊँगा
तुम्हारे पीछे-पीछे
अपने पिछले अँधेरों को पार करता।
कवि - उदय प्रकाश
संकलन - पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2012
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