यदि मैं तुम्हें बुलाऊँ तो
तुम भले न आओ
मेरे पास, परन्तु मुझे इतना तो बल दो
समझ सकूँ यह, कहीं अकेले दो ही पल को
मुझको जब-तब लख लेती हो I नीरव गाओ
प्राणों के वे गीत जिन्हें
मैं दुहराता हूँ I
सन्ध्या के गम्भीर क्षणों में शुक्र
अकेला
बुझती लाली पर हँसता है I निशि का मेला
इसकी किरणों में छाया-कम्पित
पाता हूँ
एकाकीपन हो तो जैसा इस तारे
का
पाया जाता है वैसा हो I बास अनोखी
किसी फूल से उठती है, मादकता चोखी
भर जाती है, नीरव डण्ठल बेचारे का
पता किसे है, नामहीन किस जगह पड़ा है ?
आया फूल, गया, पौधा निर्वाक् खड़ा है I
कवि - त्रिलोचन (20 अगस्त, 1917 - 9 दिसंबर, 2007)
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ
संपादन - केदारनाथ सिंह
प्रकाशन - राजकमल पेपरबैक्स, प्रथम संस्करण - 1985
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