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गुरुवार, 28 दिसंबर 2023
कविता का काम आँसू पोंछना नहीं है ('It is not poetry’s job to wipe away tears by Zakaria Mohammed Translated into Hindi)
वह रो रहा था, इसलिए उसे सँभालने के लिए मैंने उसका हाथ थामा और आँसू पोंछने के लिए
मैंने उसे कहा जब दुख से मेरा गला रुँध रहा था: मैं तुमसे वादा करता हूँ कि इंसाफ़
जीतेगा आख़िरकार, और अमन जल्दी ही क़ायम होगा।
ज़ाहिर है मैं उससे झूठ बोल रहा था। मुझे पता था कि इंसाफ़ नहीं मिलने वाला
और अमन जल्द नहीं आने वाला, पर मुझे उसके आँसू रोकने थे।
मेरी यह समझ ग़लत थी कि अगर हम किसी चमत्कार से
आँसुओं की नदी को रोक लें, तो सब कुछ ठीक ठाक तरह से चल निकलेगा।
फिर चीज़ों को हम वैसे ही मान लेंगे जैसी वे हैं। क्रूरता और इंसाफ़ एक साथ मैदान में
घास चरेंगे, ईश्वर शैतान का भाई निकलेगा, और शिकार हत्यारे का प्रेमी होगा।
पर आँसू रोकने का कोई तरीक़ा नहीं है। वे बाढ़ की तरह लगातार बहे जाते हैं और अमन की
रवायतों को तबाह कर देते हैं।
और इसलिए, आँसुओं की इस कसैली ज़िद की ख़ातिर, आइए, आँखों का अभिषेक करें
इस धरती के सबसे पवित्र संत के रूप में।
कविता का काम नहीं है आँसू पोंछना।
कविता को खाई खोदनी चाहिए जिसका बाँध वे तोड़ दें और इस ब्रह्मांड को डुबा दें।
फ़िलिस्तीनी कवि : ज़करिया मोहम्मद
अरबी से अंग्रेज़ी : लीना तुफ़्फ़ाहा
हिंदी अनुवाद : निधीश त्यागी और अपूर्वानंद
संकलन : कविता काम आँसू पोंछना नहीं
प्रकाशन : जिल्द प्रकाशन, दिल्ली, 2023
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मार्मिक, दुःखद, सामयिक!
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