सुनील हमार बात, नइखे नइहर रहल जात; जाइके करब बन में भजन हो भउजिया!
सेज मिरिगा के चाल, ओढ़ना भेड़ी के बाल; जंगल में मंगल उड़ाइब हो भउजिया!
सारी गेरुआ के रंग, मलि के भभूत अंग; गलवा में तुलसी के मलवा भउजिया!
छूरा से छिला के केस, धरबि जोगिन के भेस; लेइब एक हाथ में सुमिरनी भउजिया!
नइहर से छूटल लाग, खाइब कंद-मूल-साग; अनवाँ बउरावत बा बेइमानवाँ भउजिया!
'पिउ-पिउ' करब सोर, मन लागल बाटे मोर; बाँवाँ करवा में सोभी कमंडलवा भउजिया!
बानी पर धेयान दीहन, जंगल में खोज लिहन; दायानिधि चरन का चेरी के भउजिया!
कहत 'भिखारीदास', कातिक से चार मास; जाड़ में लेहब जलसयन हो भउजिया!
फागुन से महीना चारि, धूँई चउरासी जारि; ताहि बीच में हरिगुन गाइब हो भउजिया!
रितु बरसात भर, करि-करि हर-हर; गउरी-गनेस के पूजब हो भउजिया !
सुमिरनी = स्मरण की माला ; जलसयन = जलशयन, हठयोग की एक विधि ; चउरासी = चौरासी अग्नि, हठयोग की एक विधि
कवि - भिखारी ठाकुर
किताब - भिखारी ठाकुर रचनावली
प्रकाशक - बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, 2005
प्रस्तुत गीत 'ननद-भउजाई' नाटक से लिया गया है। इसमें तीन पात्र हैं - अखजो (एक अज्ञातयौवना गँवई स्त्री), उसकी भउजाई (बड़े भाई की पत्नी) और उसका पति चेंथरू (झंझटपुर का रहनेवाला युवक) l अखजो की शादी बालपन में हो गई थी l अभी गवना (गौना) नहीं हुआ है l
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