चला हमारा अपना चरखा, चरखा मनका मीत,
गूँज उठा इसके भन-भनमें जन-जनका संगीत l
धसक रही धरती धक्कोंमें,
पुतलीघरके उन चक्कोंमें,
बन्ध कर लोहके लच्छोंमें,
वहाँ सभी भयभीत l
यहाँ फूट है सबकी सबसे, जन जनकी है जीत,
चला हमारा अपना चरखा, चरखा मनका मीत ll 1 ll
सीधे सच्चे इस तकुएका पक्का पतला तार,
बढ़ बढ़कर ले सकता है यह सात समन्दर पार l
लोट पाट करके औरोंमें,
जले फुँके उजड़े ठौरोंमें,
बन बैठे जो सर मोरोंमें,
भय उसका निस्सार l
यहाँ हमारे जिस चरखेमें सकल सुखी संसार,
सीधे सच्चे इस तकुएका पक्का पतला तार ll 2 ll
इस घर-घर-घरमें आती है उन खेतोंकी याद,
उमड़-घुमड़ आया था जिनपर सावनका उन्माद l
खेत-खेतमें साख भरी थी,
आगेकी अभिलाष भरी थी,
धरती चारों ओर हरी थी,
लायी थी सम्वाद l
जुग जुगसे है अन्न-वसनकी अमिट यहाँ मरयाद,
इस घर-घर-घरमें आती है उन खेतोंकी याद ll 3 ll
गूँज उठा इसके भन-भनमें जन-जनका संगीत l
धसक रही धरती धक्कोंमें,
पुतलीघरके उन चक्कोंमें,
बन्ध कर लोहके लच्छोंमें,
वहाँ सभी भयभीत l
यहाँ फूट है सबकी सबसे, जन जनकी है जीत,
चला हमारा अपना चरखा, चरखा मनका मीत ll 1 ll
सीधे सच्चे इस तकुएका पक्का पतला तार,
बढ़ बढ़कर ले सकता है यह सात समन्दर पार l
लोट पाट करके औरोंमें,
जले फुँके उजड़े ठौरोंमें,
बन बैठे जो सर मोरोंमें,
भय उसका निस्सार l
यहाँ हमारे जिस चरखेमें सकल सुखी संसार,
सीधे सच्चे इस तकुएका पक्का पतला तार ll 2 ll
इस घर-घर-घरमें आती है उन खेतोंकी याद,
उमड़-घुमड़ आया था जिनपर सावनका उन्माद l
खेत-खेतमें साख भरी थी,
आगेकी अभिलाष भरी थी,
धरती चारों ओर हरी थी,
लायी थी सम्वाद l
जुग जुगसे है अन्न-वसनकी अमिट यहाँ मरयाद,
इस घर-घर-घरमें आती है उन खेतोंकी याद ll 3 ll
कवि - सियारामशरण गुप्त
किताब - सितारे (हिन्दुस्तानी पद्योंका सुन्दर चुनाव)
संकलनकर्ता - अमृतलाल नाणावटी, श्रीमननारायण अग्रवाल, घनश्याम 'सीमाब'
प्रकाशक - हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा, तीसरी बार, अप्रैल, 1952
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