सब दुखहरन सुखकर परम हे नीम! जब देखूं तुझे l
तुहि जानकर अति लाभकारी हर्ष होता है मुझे ll
ये लहलही पत्तियाँ हरी शीतल पवन बरसा रहीं l
निज मन्द मीठी वायु से सब जीव को हरषा रहीं ll
हे नीम ! यद्यपि तू कडू नहिं रंच मात्र मिठास है l
उपकार करना दूसरों का गुण निहारे पास है ll
नहिं रंच मात्र सुवास है, नहिं फूलती सुन्दर कली l
कडुवे फलों अरु फूल में, तू सर्वदा फूली फली ll
तू सर्वगुणसंपन्न है, तू जीव हितकारी बड़ी l
तू दुखःहारी है प्रिये ! तू लाभकारी है बड़ी ll
तू पत्तियों से छाल से भी काम देती है बड़ा l
है कौन ऐसा घर यहाँ जहाँ काम तेरा नहिं पड़ा ll
वे जन तिहारे ही शरण हे नीम ! आते हैं सदा l
तेरी कृपा से सुख सहित आनन्द पाते सर्वदा ll
तू रोगमुक्त अनेक जन को सर्वदा करती रहै l
इस भाँति से उपकार तू हर एक का करती रहै ll
प्रार्थना हरि से करूँ, हिय में सदा यह आश हो l
जब तक रहैं नभ चन्द्र-तारे, सूर्य का परकास हो ll
तब तक हमारे देश में तुम सर्वदा फूला करो l
निज वायु शीतल से पथिक जन का ह्रदय शीतल करो ll
कवयित्री - सुभद्राकुमारी चौहान
संग्रह - मुकुल तथा अन्य कविताएँ
प्रकाशन - हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, 1980
* यह कविता सुभद्राकुमारी चौहान की पहली कविता है, जब उनकी उम्र नौ साल की थी. यह 'मर्यादा', जून-जुलाई, 1913 में छपी थी.
ati lubhavani!
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