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रविवार, 24 फ़रवरी 2013

शिशिर-समीर (Shishir-sameer by Subhadra Kumari Chauhan)

शिशिर-समीरण, किस धुन में हो,
कहो किधर से आती हो ?
धीरे-धीरे क्या कहती हो ?
या यों ही कुछ गाती हो ?

क्यों खुश हो ? क्या धन पाया है ?
क्यों इतना इठलाती हो ?
शिशिर-समीरण ! सच बतला दो,
किसे ढूँढने जाती हो ?

मेरी भी क्या बात सुनोगी,
कह दूँ अपना हाल सखी ?
किन्तु प्रार्थना है, न पूछना,
आगे और सवाल सखी ll

फिरती हुई पहुँच तुम जाओ,
अगर कभी उस देश सखी !
मेरे निठुर श्याम को मेरा
दे देना सन्देश सखी !

मिल जावें यदि तुम्हें अकेले,
हो ऐसा संयोग सखी !
किन्तु देखना वहाँ न होवें
और दूसरे लोग सखी !!

खूब उन्हें समझा कर कहना
मेरे दिल की बात सखी l
विरह-विकल चातकी मर रही
जल-जल कर दिन रात सखी !!

मेरी इस कारुण्य दशा का
पूरा चित्र बना देना l
स्वयं आँख से देख रही हो
यह उनको बतला देना !!

दरस-लालसा जिला रही है,
कह देना, समझा देना l
नासमझी यदि कहीं हुई हो
तो उसको सुलझा देना ll

कहना किसी तरह वे सोचें
मिलने की तदबीर सखी l
सही नहीं जाती अब मुझसे
यह वियोग की पीर सखी ll

चूर-चूर हो गया ह्रदय यह
सह-सह कर आघात सखी !
शिशिर-समीरण भूल न जाना l
कह देना सब बात सखी ll 


कवयित्री - सुभद्राकुमारी चौहान
संग्रह - मुकुल तथा अन्य कविताएँ
प्रकाशन - हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, 1980

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