शामे-ग़म की सहर नहीं होती
या हमीं को ख़बर नहीं होती ?
हमने सब दुख जहाँ के देखे हैं
बेकली इस क़दर नहीं होती
नाला यूँ नारसा नहीं रहता
आह यूँ बेअसर नहीं होती
चाँद है, कहकशाँ है, तारे हैं
कोई शै नामांबर नहीं होती
एक जाँ सोज़ो-नामुराद ख़लिश
इस तरफ़ है उधर नहीं होती
रात आकर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
बेक़रारी सही नहीं जाती
ज़िंदगी मुख़्तसर नहीं होती
एक दिन देखने को आ जाते
ये हवस उम्र-भर नहीं होती
हुस्न सबको ख़ुदा नहीं देता
हर किसी की नज़र नहीं होती
दिल पियाला नहीं गदाई का
आशिक़ी दर-ब-दर नहीं होती
नाला = क्रंदन
नारसा = न पहुँचनेवाला
कहकशाँ = आकाशगंगा
शै = चीज़
नामांबर = पत्र ले जानेवाला
सोज़ो-नामुराद = असफल
मुख़्तसर = संक्षिप्त
गदाई = भिक्षा
या हमीं को ख़बर नहीं होती ?
हमने सब दुख जहाँ के देखे हैं
बेकली इस क़दर नहीं होती
नाला यूँ नारसा नहीं रहता
आह यूँ बेअसर नहीं होती
चाँद है, कहकशाँ है, तारे हैं
कोई शै नामांबर नहीं होती
एक जाँ सोज़ो-नामुराद ख़लिश
इस तरफ़ है उधर नहीं होती
रात आकर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
बेक़रारी सही नहीं जाती
ज़िंदगी मुख़्तसर नहीं होती
एक दिन देखने को आ जाते
ये हवस उम्र-भर नहीं होती
हुस्न सबको ख़ुदा नहीं देता
हर किसी की नज़र नहीं होती
दिल पियाला नहीं गदाई का
आशिक़ी दर-ब-दर नहीं होती
नाला = क्रंदन
नारसा = न पहुँचनेवाला
कहकशाँ = आकाशगंगा
शै = चीज़
नामांबर = पत्र ले जानेवाला
सोज़ो-नामुराद = असफल
मुख़्तसर = संक्षिप्त
गदाई = भिक्षा
शायर - इब्ने इंशा (1927-1978)
किताब - इब्ने इंशा : प्रतिनिधि कविताएँ
संपादक - अब्दुल बिस्मिल्लाह
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स , दिल्ली, पहला संस्करण - 1990
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