यह जो सीधी-सी सरल-सी
अपनी लिपि है देवनागरी
इतनी सरल है
कि भूल गयी है अपना सारा अतीत
पर मेरा खयाल है
'क' किसी कुल्हाड़ी से पहले
नहीं आया था दुनिया में
'च' पैदा हुआ होगा
किसी शिशु के गाल पर
माँ के चुम्बन से
'ट' या 'ठ' तो इतने दमदार हैं
कि फूट पड़े होंगे
किसी पत्थर को फोड़कर
'न' एक स्थायी प्रतिरोध है
हर अन्याय का
'म' एक पशु के रँभाने की आवाज़
जो किसी कंठ से छनकर
बन गयी होगी 'माँ'
'स' के संगीत में
संभव है एक हल्की-सी सिसकी
सुनाई पड़े तुम्हें
हो सकता है एक खड़ीपाई के नीचे
किसी लिखते हुए हाथ की
तकलीफ़ दबी हो
कभी देखना ध्यान से
किसी अक्षर में झाँककर
वहाँ रोशनाई के तल में
एक ज़रा-सी रोशनी
तुम्हें हमेशा दिखाई पड़ेगी
यह मेरे लोगों का उल्लास है
जो ढल गया है मात्राओं में
अनुस्वार में उतर आया है
कोई कंठावरोध
पर कौन कह सकता है
इसके अंतिम वर्ण 'ह' में
कितनी हँसी है
कितना हाहाकार !
कवि - केदारनाथ सिंह
संकलन - सृष्टि पर पहरा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2014
अपनी लिपि है देवनागरी
इतनी सरल है
कि भूल गयी है अपना सारा अतीत
पर मेरा खयाल है
'क' किसी कुल्हाड़ी से पहले
नहीं आया था दुनिया में
'च' पैदा हुआ होगा
किसी शिशु के गाल पर
माँ के चुम्बन से
'ट' या 'ठ' तो इतने दमदार हैं
कि फूट पड़े होंगे
किसी पत्थर को फोड़कर
'न' एक स्थायी प्रतिरोध है
हर अन्याय का
'म' एक पशु के रँभाने की आवाज़
जो किसी कंठ से छनकर
बन गयी होगी 'माँ'
'स' के संगीत में
संभव है एक हल्की-सी सिसकी
सुनाई पड़े तुम्हें
हो सकता है एक खड़ीपाई के नीचे
किसी लिखते हुए हाथ की
तकलीफ़ दबी हो
कभी देखना ध्यान से
किसी अक्षर में झाँककर
वहाँ रोशनाई के तल में
एक ज़रा-सी रोशनी
तुम्हें हमेशा दिखाई पड़ेगी
यह मेरे लोगों का उल्लास है
जो ढल गया है मात्राओं में
अनुस्वार में उतर आया है
कोई कंठावरोध
पर कौन कह सकता है
इसके अंतिम वर्ण 'ह' में
कितनी हँसी है
कितना हाहाकार !
कवि - केदारनाथ सिंह
संकलन - सृष्टि पर पहरा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2014
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