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बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

वसन्त का स्वागत (Vasant ka swagat by Hynne)

परियों के मंजीर लगे फिर बोलने,
किरण लगी जल में फिर केसर घोलने l 

मधुऋतु आयी, स्यात, गन्ध छाने लगी,
फूलों का सन्देश वायु लाने लगी l 

पत्ती-पत्ती लगी मस्त हो झूमने l 
जाओ मेरे गीत ! जंगल में घूमने l 

हरियाली हो जहाँ वहाँ वन्दन करो,
मधुऋतु की सुषमा का अभिनन्दन करो l 

सभी समागत फूलों को सत्कार दो l 
मिले कहीं पाटल तो उसको प्यार दो l


जर्मन कवि - हेनरिक हाइने (1799-1856)
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - रामधारी सिंह दिनकर
संकलन - सीपी और शंख 
प्रकाशक - नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, दूसरा संस्करण - 1997

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