तिफ़्ली में आरज़ू थी किसी दिल में हम भी हों
इक रोज़ सोज़ो-साज़ की महफ़िल में हम भी हों
तिफ़्ली = बचपन
दिल हो असीर गेसू-ए-अंबरसरिश्त में
उलझे उन्हीं हसीन सलासिल में हम भी हों
असीर = क़ैदी सलासिल = ज़ंजीरों
गेसू-ए-अंबरसरिश्त = ख़ुशबू भरी ज़ुल्फ़ों
छेड़ा है साज़ हज़रते-सादी ने जिस जगह
उस बोस्ताँ के शोख़ अनादिल में हम भी हों
बोस्ताँ = उपवन अनादिल = बुलबुलों
गाएँ तराने दोशे-सुरैया पे रख के सर
तारों से छेड़ हो, महे-कामिल में हम भी हों
दोशे-सुरैया = तारासमूहों के कंधों
महे-कामिल = पूर्णिमा का चाँद
आज़ाद होक कश्मकशे-इल्म से कभी
आशुफ़्तगाने-इश्क़ की मंज़िल में हम भी हों
आशुफ़्तगाने-इश्क़ = इश्क़ के दीवानों
दीवानावार हम भी फिरें कोहो-दश्त में
दिलदारगाने-शोल-ए-महमिल में हम भी हों
कोहो-दश्त = पहाड़ व रेगिस्तान
दिलदारगाने-शोल-ए-महमिल = ऊँट की पीठ पर औरतों के लिए
किए जानेवाले पर्दे (महमिल) की सुंदरियों (शोलों) के दीवानों
दिल को हो शाहज़ादि-ए-मक़सद की धुन लगी
हैराँ सुरागे-ज़ाद-ए-मंज़िल में हम भी हों
सुरागे-ज़ाद-ए-मंज़िल = मंज़िल की राह का सुराग़ पाने
सेहरा हो, ख़ारज़ार हो, वादी हो, आग हो
इक दिन उन्हीं महीब मनाज़िल में हम भी हों
सेहरा = रेगिस्तान ख़ारज़ार = काँटों भरी धरती
महीब = भयानक मनाज़िल = मंज़िलों
दरिया-ए-हश्रख़ेज़ की मौजों को चीरकर
किश्ती समेत दामने-साहिल में हम भी हों
दरिया-ए-हश्रख़ेज़ = क़यामत ढानेवाला दरिया
दामने-साहिल = किनारे का दामन
इक लश्करे-अज़ीम हो मसरूफ़े-कारज़ार
लश्कर के पेश-पेश मुक़ाबिल में हम भी हों
लश्करे-अज़ीम = भारी फ़ौज मसरूफ़े-कारज़ार = युद्धरत
पेश-पेश = आगे-आगे
चमके हमारे हाथ में भी तेग़े-आबदार
हंगामे-जंग नर्ग-ए-बातिल में हम भी हों
नर्ग-ए-बातिल = पापियों के घेरे
क़दमों पे जिनके ताज हैं अक़्लीमे-दहर के
उन चंद कुश्तगाने-ग़मे-दिल में हम भी हों
अक़्लीमे-दहर = दुनिया के देशों
कुश्तगाने-ग़मे-दिल = दिल के ग़मों के मारे हुओं
शायर - मजाज़ लखनवी
इक रोज़ सोज़ो-साज़ की महफ़िल में हम भी हों
तिफ़्ली = बचपन
दिल हो असीर गेसू-ए-अंबरसरिश्त में
उलझे उन्हीं हसीन सलासिल में हम भी हों
असीर = क़ैदी सलासिल = ज़ंजीरों
गेसू-ए-अंबरसरिश्त = ख़ुशबू भरी ज़ुल्फ़ों
छेड़ा है साज़ हज़रते-सादी ने जिस जगह
उस बोस्ताँ के शोख़ अनादिल में हम भी हों
बोस्ताँ = उपवन अनादिल = बुलबुलों
गाएँ तराने दोशे-सुरैया पे रख के सर
तारों से छेड़ हो, महे-कामिल में हम भी हों
दोशे-सुरैया = तारासमूहों के कंधों
महे-कामिल = पूर्णिमा का चाँद
आज़ाद होक कश्मकशे-इल्म से कभी
आशुफ़्तगाने-इश्क़ की मंज़िल में हम भी हों
आशुफ़्तगाने-इश्क़ = इश्क़ के दीवानों
दीवानावार हम भी फिरें कोहो-दश्त में
दिलदारगाने-शोल-ए-महमिल में हम भी हों
कोहो-दश्त = पहाड़ व रेगिस्तान
दिलदारगाने-शोल-ए-महमिल = ऊँट की पीठ पर औरतों के लिए
किए जानेवाले पर्दे (महमिल) की सुंदरियों (शोलों) के दीवानों
दिल को हो शाहज़ादि-ए-मक़सद की धुन लगी
हैराँ सुरागे-ज़ाद-ए-मंज़िल में हम भी हों
सुरागे-ज़ाद-ए-मंज़िल = मंज़िल की राह का सुराग़ पाने
सेहरा हो, ख़ारज़ार हो, वादी हो, आग हो
इक दिन उन्हीं महीब मनाज़िल में हम भी हों
सेहरा = रेगिस्तान ख़ारज़ार = काँटों भरी धरती
महीब = भयानक मनाज़िल = मंज़िलों
दरिया-ए-हश्रख़ेज़ की मौजों को चीरकर
किश्ती समेत दामने-साहिल में हम भी हों
दरिया-ए-हश्रख़ेज़ = क़यामत ढानेवाला दरिया
दामने-साहिल = किनारे का दामन
इक लश्करे-अज़ीम हो मसरूफ़े-कारज़ार
लश्कर के पेश-पेश मुक़ाबिल में हम भी हों
लश्करे-अज़ीम = भारी फ़ौज मसरूफ़े-कारज़ार = युद्धरत
पेश-पेश = आगे-आगे
चमके हमारे हाथ में भी तेग़े-आबदार
हंगामे-जंग नर्ग-ए-बातिल में हम भी हों
नर्ग-ए-बातिल = पापियों के घेरे
क़दमों पे जिनके ताज हैं अक़्लीमे-दहर के
उन चंद कुश्तगाने-ग़मे-दिल में हम भी हों
अक़्लीमे-दहर = दुनिया के देशों
कुश्तगाने-ग़मे-दिल = दिल के ग़मों के मारे हुओं
शायर - मजाज़ लखनवी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मजाज़ लखनवी
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - राधाकृष्ण पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 2001
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