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रविवार, 31 अगस्त 2014

कहो राम, कबीर (Kaho Ram, Kabeer by Ajneya)


न कहीं से 
न कहीं को
         पुल  
न किसी का 
न किसी पे 
         दिल 
न कहीं गेह 
न कहीं द्वार 
         सके जो खुल 
न कहीं नेह 
न नया नीर 
         पड़े जो ढुल … 
यहाँ गर्द-गुबार 
न कहीं गाँव 
न रूख 
न तनिक छाँव 
न ठौर 
यहाँ धुन्ध 
यहाँ गैर सभी 
          गुमनाम 
यहाँ गुमराह 
          सभी पैर 
यहाँ अन्ध 
यहाँ - न कहीं - यहाँ दूर … 
कहो राम,
            कबीर !


कवि - अज्ञेय 
संकलन - नदी की बाँक पर छाया 
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली, 1981  

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