न कहीं से
न कहीं को
पुल
न किसी का
न किसी पे
दिल
न कहीं गेह
न कहीं द्वार
सके जो खुल
न कहीं नेह
न नया नीर
पड़े जो ढुल …
यहाँ गर्द-गुबार
न कहीं गाँव
न रूख
न तनिक छाँव
न ठौर
यहाँ धुन्ध
यहाँ गैर सभी
गुमनाम
यहाँ गुमराह
सभी पैर
यहाँ अन्ध
यहाँ - न कहीं - यहाँ दूर …
कहो राम,
कबीर !
कवि - अज्ञेय
संकलन - नदी की बाँक पर छाया
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली, 1981
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