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शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

उड़ गया है रंग (Uda gaya hai rang by Muktibodh)

उड़ गया है रंग 
प्राण दुकूल का, पर चढ़ रहा है ओज 
व्यक्ति-बबूल पर 
औ' तिक्त कड़ुए गोंद-सा 
कुछ व्यर्थ का साफल्य 
सूना सारहीन महत्त्व 
बहकर सूखकर एकत्र है 
औ' खुरदुरे काले तने की डालियाँ 
इस गोंद की 
कटु-कठिन गाँठों से 
सुशोभित हो 
प्रदर्शित कर रही हैं आत्म-वैभव 
आत्म-गरिमा 
रात-दिन 


[संभावित रचनाकाल 1945-1946. बनारस. हंस, जून 1946 में प्रकाशित]

कवि - मुक्तिबोध 
संकलन - मुक्तिबोध रचनावली, खंड 1 
संपादक - नेमिचंद्र जैन 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, तीसरी आवृत्ति, 2011 

आज के भाषण के संदर्भ में इस कविता को पढ़ें तो एक और कोण खुलता है !

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