दिलज़ ताबे बला बिगुज़ाद-ओ-खूं कुन
ज़ि-दानिश का नक़शायद जुनूँ कुन
दिल को अपने
मुश्किलों की
आँच पर
पिघला के तुम
लोहू बना दो।
व्यर्थ शंकाएँ
कभी
दिल में न लाओ।
विवेक
और बुद्धि से जब
कुछ काम न निकले
तो फिर
दीवाने बन जाओ।
शायर - मिर्ज़ा ग़ालिब
मूल फ़ारसी से हिन्दी अनुवाद - सादिक़
संग्रह - चिराग़-ए-दैर, बनारस पर केन्द्रित कविताएँ
प्रकाशन - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2018
रज़ा पुस्तक माला : कविता
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