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शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

तिरहुति लोकगीत में कृष्ण और राधा (Krishna and Radha in Tirhuti folksong)

साजि चललि सब सुन्दरि रे 

मटुकी शिर भारी 

धय मटुकी हरि रोकल रे 

जनि करिय वटमारी 

अलप वयस तन कोमल रे 

रीति करय न जानै 

धाए पड़लि हरि चरणहि रे 

हठ तेजह मुरारी 

निति दिन एहि विधि खेपह हे 

तोहे बड़ बुधिआरी 

आज अधर रस दय लेह हे 

पथ चलह झटकारी 

झाँखिय खुंखिय राधा वैसलि रे 

वैसलि हिय हारी 

नंदलाल निर्दय भेल रे 

हिरदय भेल भारी 

भनहिं 'कृष्ण' कवि गोचर करु रे 

सुनु गुनमंति नारी 

आज दिवस हरि संग रहु रे 

अवसर जनु छाँड़ी 


व्रजांगनाएँ शिर पर भारी गागर लिए सज-धज कर निकलीं। श्रीकृष्ण ने गागर पकड़ कर रास्ता रोक लिया। 

हे कृष्ण, राहजनी मत करो। मेरी उम्र थोड़ी है, और शरीर कोमल। मैं रीति का मर्म नहीं जानती। इस प्रकार वे सुन्दरियाँ श्रीकृष्ण के चरण पकड़ कर तरह-तरह से अनुनय-विनय करने लगीं। हे कृष्ण, तुम अपना यह हठ छोड़ दो। 

श्रीकृष्ण ने कहा - हे व्रजांगने, तुम नित्य इसी तरह टालमटोल करती हो। सचमुच तुम बड़ी चतुर हो। आज अपने अधर-रस का दान दो, और तब प्रसन्न होकर अपना रास्ता लो। 

राधा इस आकस्मिक विपत्ति से मुक्त होने के लिए इधर-उधर झाँक कर और खाँस कर अन्त में नाउम्मीद हो कर बैठ गई। 

हे सखी, श्रीकृष्ण कितने कठोर हैं। उनकी इस नाजायज़ हरकत से दुख होता है। 

कवि 'कृष्ण' कहते हैं - हे गुणवन्ती, सुनो। तुम आज श्रीकृष्ण के साथ प्रेमपूर्वक दिन बिताओ, और इस अवसर पर लाभ उठाने से मत चूको। 


यह तिरहुति लोकगीत है। राम इकबाल सिंह 'राकेश' के शब्दों में, "'झूमर' और 'सोहर' को यदि हम ग्राम-साहित्य-निर्झरिणी का मधुर कलकल नाद कहें, तो मिथिला के 'तिरहुति' नामक गीत को फागुन का अभिसार कहना पड़ेगा। स्वाभाविकता, सरलता, प्रेमपरता का सामंजस्य और उच्च भावों का स्पष्टीकरण - ये 'तिरहुति' की विशेषताएँ हैं। इसकी रचना पद्धति मुक्तक काव्य की तरह भावों की उन्मुक्त पृष्ठभूमि पर मर्यादित है।"


संग्रह - मैथिली लोकगीत
संग्रहकर्ता और संपादक - राम इकबाल सिंह 'राकेश'
भूमिका-लेखक - पंडित अमरनाथ झा 
प्रकाशक - हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग

   

6 टिप्‍पणियां:

  1. श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर श्री कृष्ण लीला की इस मनमोहक झलक के लिए हार्दिक आभार 🙏 ़

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  2. कृष्ण रास्ते मे सेजिया सजा दुंगीं मै सोयुंगी अकेले तुम आ जाना। कृष्णा तुम तो बसे वृन्दावन मे,मेरी उमर गुजर गई गोखुल मे।।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०८ -२०२२ ) को 'वसुधा के कपाल पर'(चर्चा अंक -४५२७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. आहा…बहुत सुन्दर रचना - उषा किरण

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  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति- उषा किरण

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