नारी ...
चुन लिया करती है बुरे से भले को
वह सब कुछ नहीं निगलती
जो भी मिलता है उसे तौलती है
परखती है तराशती है
लेकिन मर्द ? वह तो भोगी है
सबकुछ चाटनेवाला
किसी में न बाँटनेवाला
मर्द की इन्हीं ऐयाशी [भरी] आदतों के कारण
कई सभ्यताएँ उभरीं और डूब गयीं
कई राजपाट बने और ढह गये
दुनिया की छल-कपटों के बीच बैठी यह औरत
तसल्ली देती है मर्द के भरम, सपने [सपनों], उसूलों को
हाथ थामे रहती है अपनी आखरी [आखिरी] साँस तक
साथ-साथ चलती है सभ्यताओं से सभ्यताओं तक ...
कन्नड़ कवि - नागतिहल्ली रमेश
संग्रह - सागर और बारिश
हिन्दी अनुवाद - गिरीश जकापुरे
प्रकाशन - सृष्टि प्रकाशन, बंगलोर, 2015
काफी समय लगा इस कन्नड़ कवि की भाषा और लय को पकड़ने में। कई बार पढ़ा। बहुत अलग किस्म के अनुभव और अभिव्यक्तियाँ हैं। अनुवाद और किताब की सज्जा भी हिन्दी किताबों से भिन्न है। रसास्वादन के लिए रमना पड़ता है और मेहनत लगती है, यह इस बार भी महसूस हुआ। खोजकर और पढ़ना है नागतिहल्ली रमेश को तभी पूरा आनंद आएगा। अभी एक कविता इस संग्रह से जो सीधे सीधे अपनी बात कहती है और हम उत्तर भारतीयों के मन-मिजाज़ वाली भाषा में अनूदित है।
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