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शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

नोटबन्दी (Demonetisation by Shruti Kushwaha)

मैं तितलियों का मुरीद था 

मेरा रंगो-बू से क़रार था

मेरे हौसले थे हवाओं में 

मुझे मछलियों से प्यार था

ये हाल ही की तो बात है 

कि तभी निज़ाम बदल गया 


मेरी ज़िन्दगी में सुकून था

मेरे मुँह में मेरी ज़बान थी

इसी मेज़ पर अख़बार था

यहीं जुगनुओं की दुकान थी 

ये हाल ही की तो बात है 

कि तभी निज़ाम बदल गया 


तेरा हुस्न था मेरा इश्क़ था

दुनिया में बस ये बवाल था

तेरे होंठ जैसे गुलाब हों 

उन्हें चूमने का ख़याल था

ये हाल ही की तो बात है 

कि तभी निज़ाम बदल गया 


न तो जाम से कोई ख़ौफ़ था

न चाय में कोई खोट था

मेरी जेब में वो हसीन सा 

उफ़्फ़ इक हज़ार का नोट था

ये हाल ही की तो बात है 

कि तभी निज़ाम बदल गया 


कवयित्री : श्रुति कुशवाहा 

संकलन : सुख को भी दुख होता है 

प्रकाशन: राजकमल पेपरबैक्स, नई दिल्ली, 2025

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