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शनिवार, 26 जुलाई 2025

नूपुर आज बजाओ ना (Nupur aaj bajao na by Gopal Singh 'Nepali')


इतनी भी क्या देर कर रही, 

झटपट साज सजाओ ना !

मेरे सूने से आँगन में

नूपुर आज बजाओ ना !

यों तो वन-उपवन में उड़ती

है फूलों की धूल,

उपवन की क्यारी-क्यारी में

बिछे हुए हैं शूल

पर जब आता नव वसन्त है,

खिल उठते वनफूल,

सजती डाल, पवन चलता है

डाल-डाल पर झूल !

तुम भी जीवन की तरंग में

झूलो और झुलाओ ना!

गा-गाकर मधुगान कोकिले,

सरस वसंत बुलाओ ना !


यों तो पहले से टूटे हैं 

जग-वीणा के तार,

उत्सव बिना जगत सूना है,

लगता जीवन भार, 

पर जब आता पावस, होती 

फुहियों की बौछार,

सुन संगीत झमक उठता है 

मन्त्रमुग्ध संसार। 

प्यासे मेरे प्राण, प्रेम से 

जीवन-सुधा पिलाओ ना!

पढ़कर मन्त्र, छिड़क ममता-जल 

आओ आज जिलाओ ना!


नियति-व्यंग्य से, प्रकृति रोष से 

मानव है भयभीत,

आँखों में आँसू भर कर वह

गाता दुःख के गीत

कठिन विरह अनुकूल जगत में

मधुर मिलन विपरीत,

जन्म-जन्म की हार और यह

दो-दो क्षण की जीत!

युग-युगव्यापी उत्पीड़न से

मेरे प्राण छुड़ाओ ना !

मेरे उर की दीप-शिखा में

आओ, नयन जुड़ाओ ना !


जग का गहर तिमिर हरता है – 

नव प्रभात रवि बाल,

डाल दिया करती मुट्ठी भर

संध्या अबिर गुलाल,

ज्योति तिमिर की वय:संधि में

जग का यौवन लाल,

चन्द्रकिरण बुनती है जलथल

दिग-दिगंत छवि जाल !


मेरे जीवन के निकुंज में

चन्द्रकिरण बन जाओ ना !

मेरी आंखों की पलकों पर

मधुर स्वप्न बन छाओ ना !


क्षणिक जगत, जीवन क्षण भंगुर, 

किंतु अमर है पीर!

सुख है चंचल, दुख है चंचल

प्राण-स्रोत गंभीर !

खेल रहे हैं हम-तुम दोनों

जन्म-मरण के तीर !

दोनों जग के बीच खिंची है

लंबी एक लकीर !

बहुत पुरानी इस लकीर को

आओ आज मिटाओ ना !

जन्म-ज्योति से मृत्यु-तिमिर की - 

सीमा दूर हटाओ ना!

प्यासे मेरे प्राण, प्रेम से

जीवन-सुधा पिलाओ न !


कवि - गोपाल सिंह 'नेपाली'

संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ 

प्रकाशन - राजकमल पेपरबैक्स, नई दिल्ली, दूसरी आवृत्ति - 2014 

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