बुझ गया चंदा, लुट गया घरवा, बाती बुझ गई रे
दैया राह दिखाओ
मोरी बाती बुझ गई रे, कोई दीप जलाओ
रोने से कब रात कटेगी, हठ न करो, मन जाओ
मनवा कोई दीप जलाओ
काली रात से ज्योति लाओ
अपने दुख का दीप बनाओ
हठ न करो, मन जाओ
मनवा कोई दीप जलाओ
शायर : फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
संकलन : प्रतिनिधि कविताएँ
प्रकाशन : राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पाँचवीं आवृत्ति, 2012