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शनिवार, 8 दिसंबर 2012

चीख़ (Outburst by Ana Blandiana)


हर एक चीख़ पर 
निकल पड़ता है एक ईश्वर 
अपने विराट परों को लहराता 
अपने परिधान को आसमान भर में उड़ाता l 

कई तरह के हैं ईश्वर 
इस धरती पर 
हम कभी भी सक्षम नहीं हो पाएँगे 
इतना हँसने या रोने के लिए 
उन्हें लुभाने के लिए, जहाँ वे जा छुपते हैं l 

भले ही ठहाके हों या आँसू,
इनसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता :
ज़रूरी चीज़ है चीख़ l 


रोमानियाई कवयित्री - आना ब्लांडिआना (मूल नाम : ओतेलिया वालेरिया कोमां)
संकलन - सच लेता है आकार, समकालीन रोमानियाई कविता 
चयन/सम्पादन - आन्द्रीआ देलेतान्त, ब्रेण्डा वाकर 
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - रणजीत साहा 
प्रकाशक - साहित्य अकादेमी, दिल्ली, 2002

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