वही पुरानी यात्राएँ और वही पुराने गंतव्य
और मसूर के कटोरे पर वही पुराने कबूतर
किसी मक्कार के नाम इनाम l
भटक रहा हूँ मैं आराम और पवित्र वस्तुओं की तलाश में,
भरपूर और तिक्ततर आँसुओं के लिए,
विनम्रता और प्रार्थनाओं के लिए,
माताओं की समाधियों के विषाद के लिए l
चूँकि लाद दिए गए हैं मुझ पर कुछ शब्द
औ जो लटके हुए हैं मेरी गर्दन से
जबकि मेरा दिमाग चाह रहा है
देना ईँट का जवाब पत्थर से
और निकाल लेना एक दाँत के बदले पूरी की पूरी बत्तीसी l
रोमानियाई कवयित्री - कोन्स्तान्ता बूज़ेआ
(जन्म 29 मार्च, 1941, बुख़ारेस्त)
संकलन - सच लेता है आकार, समकालीन रोमानियाई कविता चयन/सम्पादन - आन्द्रीआ देलेतान्त, ब्रेण्डा वाकर
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - रणजीत साहा
प्रकाशक - साहित्य अकादेमी, दिल्ली, 2002
अनुवादक के मुताबिक कवयित्री का नाम कोन्स्तांत्सा बूज़ेआ है।
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