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शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

उक्ति (Ukti by Siddhinath Mishra)

छक-छककर पी 

फिर भी, 

भरा न जी;

वह तृषा - 

          वही तो तृषा। 

रंग, तान, रस, गंध, स्पर्श से 

जुड़ा गए मन-प्राण;

वह तृप्ति - 

           वही तो तृप्ति। 

हटें न आँखें,

जनम-अवधि-भर 

चाहे जितनी बार निहारूँ;

वह रूप - 

           वही तो रूप। 

सुख-दुख में 

समरूप भाव-

मृत्यु-भय से ं डरे;

वह जीवन -

             वही तो जीवन। 

बार-बार की पढ़ी हुई 

तो भी 

फिर-फिर पढ़ने को मन खींचे;

वह कविता - 

             वही तो कविता। 



कवि - सिद्धिनाथ मिश्र
संग्रह - द्वाभा
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2010



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