हम उजाला जगमगाना चाहते हैं
अब अँधेरे को हटाना चाहते हैं
हम मरे दिल को जिलाना चाहते हैं
हम गिरे सिर को उठाना चाहते हैं
बेसुरा स्वर हम मिलाना चाहते हैं
ताल-तुक पर गान गाना चाहते हैं
हम सबों को सम बनाना चाहते हैं
अब बराबर पर बिठाना चाहते हैं
हम उन्हें धरती दिलाना चाहते हैं
जो वहाँ सोना उगाना चाहते हैं
- 28.9.46
कवि - केदारनाथ अग्रवाल
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ
संपादक - अशोक त्रिपाठी
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 2012
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ
संपादक - अशोक त्रिपाठी
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 2012
Summary of the poem
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