केन किनारे
पल्थी मारे
पत्थर बैठा गुमसुम !
सूरज पत्थर
सेंक रहा है गुमसुम !
साँप हवा में
झूम रहा है गुमसुम !
पानी पत्थर
चाट रहा है गुमसुम !
सहमा राही
ताक रहा है गुमसुम !
कवि - केदारनाथ अग्रवाल
संकलन - कविता नदी
संपादक - प्रयाग शुक्ल
प्रकाशक - महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए
किताबघर प्रकाशन, दिल्ली, 2002
पल्थी मारे
पत्थर बैठा गुमसुम !
सूरज पत्थर
सेंक रहा है गुमसुम !
साँप हवा में
झूम रहा है गुमसुम !
पानी पत्थर
चाट रहा है गुमसुम !
सहमा राही
ताक रहा है गुमसुम !
कवि - केदारनाथ अग्रवाल
संकलन - कविता नदी
संपादक - प्रयाग शुक्ल
प्रकाशक - महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए
किताबघर प्रकाशन, दिल्ली, 2002
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