Translate

सोमवार, 21 जुलाई 2014

छाता (Chaataa by Ashok Vajpeyi)

छाते के बाहर ढेर सारी धूप थी 
छाता - भर धूप सिर पर आने से बच गई थी l 
तेज़ हवा को छाता 
अपने भर रोक पाता था l 
बारिश में इतने सारे छाते थे
कि लगता था कि लोग घर पर बैठे हैं 
और छाते ही सड़क पर चल रहे हैं l 
अगर धूप तेज़ हवा और बारिश न हो 
तो किसी को याद नहीं रहता 
कि छाता कहाँ दुबका पड़ा है l 
                      - 28. 7. 2010



कवि - अशोक वाजपेयी   
संकलन - कहीं कोई दरवाज़ा   
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2013

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें