मनमाफ़िक मेरी पसंदीदा कविताओं, कहानियों और अन्य रचनाओं का संकलन है.
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सोमवार, 14 जुलाई 2014
परछाईं (Parchhain by Mangalesh Dabaral)
परछाईं उतनी ही जीवित है जितने तुम तुम्हारे आगे-पीछे या तुम्हारे भीतर छिपी हुई या वहां जहां से तुम चले गये हो - 1975 कवि - मंगलेश डबराल संकलन - पहाड़ पर लालटेन प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, तीसरा संस्करण - 2014
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