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शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

अंक और अक्षर (Ank aur akshar by Kunwar Narayan)


हवा में उड़ रहे थे अंक ही अंक 
        चिड़ियों की तरह चहचहाते 
        कभी मकानों पर बैठ जाते
        कभी दुकानों पर 
        कभी मोटरों पर
        कभी बिजली के तारों पर 

सब पकड़ रहे थे उन्हें 
        अपनी अपनी तरह 
        अपनी अपनी ज़मीन पर l

किसी के हाथ लगा … 1
किसी के हाथ … 2 
किसी के हाथ … 3 

          जिसके जो हाथ लगा 
          वह उसी से बैठाने लगा 
          अपनी ज़िंदगी का जोड़ तोड़ l 

जिनके हाथ आया … 0 
          उनमें से कुछ 
चले गए अंकों से अक्षरों की दुनिया में l


कवि - कुँवर नारायण
संकलन - इन दिनों
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2002

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