हरियाली को आँखें तरसें, बगिया लहूलुहान
प्यार के गीत सुनाऊँ किसको, शहर हुए वीरान
बगिया लहूलुहान
डसती हैं सूरज की किरनें, चाँद जलाए जान
पग-पग मौत के गहरे साये, जीवन मौत समान
चारों ओर हवा फिरती है लेकर तीर - कमान
बगिया लहूलुहान
छलनी हैं कलियों के सीने, ख़ून में लतपत पात
और न जाने कब तक होगी अश्कों की बरसात
दुनियावालो कब बीतेंगे दुख के ये दिन - रात
ख़ून से होली खेल रहे हैं धरती के बलवान
बगिया लहूलुहान
शायर - हबीब 'जालिब'
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : हबीब 'जालिब'
संपादक - नरेश नदीम
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010
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