भोर की
प्रथम किरण
फीकी :
अनजाने
जागी हो
याद
किसी की -
अपनी
मीठी
नीकी !
धीरे-धीरे
उदित
रवि का
लाल-लाल
गोला
चौंक कहीं पर
छिपा
मुदित
बन-पाखी
बोला
दिन है
जय है
यह बहु-जन की :
प्रणति
लाल रवि,
ओ जन-जीवन
लो यह
मेरी
सकल साधना
तन की
मन की -
वह बन-पाखी
जाने गरिमा
महिमा
मेरे छोटे
चेतन
छन की !
कवि - अज्ञेय
संकलन - चुनी हुई कविताएं
प्रकाशक - राजपाल एंड सन्ज, दिल्ली, 1987
सुन्दर
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