छाते के बाहर ढेर सारी धूप थी
छाता - भर धूप सिर पर आने से बच गई थी l
तेज़ हवा को छाता
अपने भर रोक पाता था l
बारिश में इतने सारे छाते थे
कि लगता था कि लोग घर पर बैठे हैं
और छाते ही सड़क पर चल रहे हैं l
अगर धूप तेज़ हवा और बारिश न हो
तो किसी को याद नहीं रहता
कि छाता कहाँ दुबका पड़ा है l
- 28. 7. 2010
कवि - अशोक वाजपेयी
संकलन - कहीं कोई दरवाज़ा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2013
छाता - भर धूप सिर पर आने से बच गई थी l
तेज़ हवा को छाता
अपने भर रोक पाता था l
बारिश में इतने सारे छाते थे
कि लगता था कि लोग घर पर बैठे हैं
और छाते ही सड़क पर चल रहे हैं l
अगर धूप तेज़ हवा और बारिश न हो
तो किसी को याद नहीं रहता
कि छाता कहाँ दुबका पड़ा है l
- 28. 7. 2010
कवि - अशोक वाजपेयी
संकलन - कहीं कोई दरवाज़ा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2013
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें