वे क्या जानें पीर पराई
हाज़िर रहता जिनकी खिदमत में
हर वक्त जहाज हवाई
जो न कभी भू पर पग रखते
स्वाद स्वर्ग का निशिदिन चखते
पाँवदान की यात्रा का अनुभव
उनको कैसे हो भाई
उड़ती धूल धरती पर कैसे
देती बालों को भर कैसे
कठिन हिमालय-आरोहण से
ज्यादा बस की विमल चढ़ाई
जनता कैसे लेती राशन
कितना महँगा बर्तन-बासन
इसका पता उन्हें कैसे
जिनको दो दर्जन नौकर-दाई
वे क्या जानें हैं क्या जाड़ा
है पुआल - पावक क्यों प्यारा
जिनके तन के नीचे तोशक
ऊपर से मखमली रजाई
जो गर्मी में राँची जाकर
समय काटते मौज उड़ाकर
उन्हें पता क्या बजती कैसे
मच्छर के मुँह से शहनाई
जो न अन्न खाकर जीते हैं
मधुर फलों का रस-भर पीते
चाय उपजानेवालों की
क्यों वे करने चलें भलाई
तन कैसे छिलता जहाज पर
घिस जाते कैसे दुर्बल नर
चढ़ती और उतरती वेला में
होती किस भाँति लड़ाई
कवि - रामजीवन शर्मा 'जीवन'
संपादक - नंदकिशोर 'नवल'
प्रकाशक - सारांश प्रकाशन, दिल्ली, 1996
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