चोंच में दबाए एक तिनका
गोरैय्या
मेरी खिड़की के खुले हुए
पल्ले पर
बैठ गयी
और देखने लगी
मुझे और
कमरे को l
मैंने उल्लास से कहा
तू आ
घोंसला बना
जहाँ पसन्द हो
शरद के सुहावने दिनों से
हम साथी हों l
कवि - त्रिलोचन
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ में 'धरती' से
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पेपरबैक्स, 1985
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