ताजे लहू की तरह लाल
बदमिजाज राजा के गाल
बाहर से सुर्ख भीतर से सड़े टमाटर-सरीखे फूले गालोंवाला राजा
बमककर फट पड़ता है सुबह-सुबह
झूठमूठ हँसने की जुगत में जुटे चेहरों पर
गन्धाता गूदा छिटककर
पसर जाता है बीजों के साथ
संक्रामक टीबी-मरीजों की थूक की तरह
राजा उड़ जाता है फिर फुर्र से ऊपर, बहुत ऊपर
चील-जहाज पर
घर्र घर्र घर्र
बैठी घटोत्कच की अम्मा-सरीखी सुन्दर रानी साथ
हिलाती है हाथ
नीचे, बहुत नीचे
नदियों का पानी
चढ़ता है, चढ़ता है, चढ़ता ही जाता है
गर्भिणी-गर्विनी नदियाँ
पेट फुलाए दौडती हैं उन्मत्त
सर्वस्व निगलती
पछाड़ खाती, हरा-पीला झाग उगलती
हजार-हजार फणोंवाले विषधरों की तरह फुफकारती
नदियों की नीयत भाँप भागते हैं लोग बदहवास
बच्चे तक डर जाते हैं
कुछ डूब जाते हैं, कुछ घिर जाते हैं
कुछ तैरते हैं दुर्गन्ध के गँदले फेनिल असीम महासागर में
साँपों को तैरना आता है
मुर्दों को भी
साँप तैरते हैं गली-फूली लाशों के साथ
बेशुमार लाशें
कुछ भूख-महामारी में मरे आदमजादों के, पशुओं के
कुछ सँपकट्टी से मरे ढोरों के, शिशुओं के
जो तैर नहीं पाए जीवन-भर
उनके भी मुर्दे तैरते हैं आसानी से
महाविनाश महाशोक का महोत्सव
भूख-भूख-भूख, पानी-पानी
सर पटकता, झपटता, हहाता दहाड़ता पानी
पानी जीवन नहीं, सहमरण समूहमरण
नीचे जीवन, भूख-भीख, दान-ग्लानि
ऊपर राजा-रानी l
कवि - निर्मल कुमार चक्रवर्ती
संकलन - जनपद : विशिष्ट कवि
संपादक - नंदकिशोर नवल, संजय शांडिल्य
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2006
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