इंशा जी बहुत दिन बीत चुके
तुम तन्हा थे तुम तन्हा हो
ये जोग-बिजोग तो ठीक नहीं
ये रोग किसी का अच्छा हो ?
कभी पूरब में कभी पच्छिम में
तुम पुरवा हो तुम पछुवा हो ?
जो नगरी-नगरी भटकाए
ऐसा भी न मन में काँटा हो
क्या और सभी चोंचला यहाँ
क्या एक तुम्हीं यहाँ दुखिया हो
क्या एक तुम्हीं पर धूप कड़ी
जब सब पर सुख का साया हो
तुम किस जंगल का फूल मियाँ
तुम किस बगिया का मेला हो ?
तुम किस सागर की लहर भला
तुम किस बादल की बरखा हो
तुम किस पूनम का उजियारा
किस अंधी रैन की ऊषा हो
तुम किन हाथों की मेंहदी हो
तुम किस माथे का टीका हो
क्यों शहर तजा क्यों जोग लिया
क्यों वहशी हो क्यों रुसवा हो
हम जब देखें बहरूप नया
हम क्या जानें तुम क्या-क्या हो ?
तुम तन्हा थे तुम तन्हा हो
ये जोग-बिजोग तो ठीक नहीं
ये रोग किसी का अच्छा हो ?
कभी पूरब में कभी पच्छिम में
तुम पुरवा हो तुम पछुवा हो ?
जो नगरी-नगरी भटकाए
ऐसा भी न मन में काँटा हो
क्या और सभी चोंचला यहाँ
क्या एक तुम्हीं यहाँ दुखिया हो
क्या एक तुम्हीं पर धूप कड़ी
जब सब पर सुख का साया हो
तुम किस जंगल का फूल मियाँ
तुम किस बगिया का मेला हो ?
तुम किस सागर की लहर भला
तुम किस बादल की बरखा हो
तुम किस पूनम का उजियारा
किस अंधी रैन की ऊषा हो
तुम किन हाथों की मेंहदी हो
तुम किस माथे का टीका हो
क्यों शहर तजा क्यों जोग लिया
क्यों वहशी हो क्यों रुसवा हो
हम जब देखें बहरूप नया
हम क्या जानें तुम क्या-क्या हो ?
शायर - इब्ने इंशा (1927-1978)
किताब - इब्ने इंशा : प्रतिनिधि कविताएँ
संपादक - अब्दुल बिस्मिल्लाह
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स , दिल्ली, पहला संस्करण - 1990
खुर्शीद को इब्ने इंशा पसंद थे। आज उनके लिए यह सवाल है - "क्यों शहर तजा क्यों जोग लिया ... हम क्या जानें तुम क्या-क्या हो ?"
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